जल का गिरता स्तर..!!

 सूख गये सब खेत खलियान ...
मानों हरियाली ने ओढ़ लिया हो कोई परिधान 
प्रकृति के आगे बेबश हैं हर इन्सान
सूख गये सब खेत खलियान ...
अम्बर से नीर बरसे तो होवे सब हरा भरा , अन्येथा सभी हैं बेजान
सूख गये सब खेत खलियान ...
दिसंबर-जनवरी के मास में हरियाली मानो मन मोह रही थी ,लेकिन सूखे खेत देख शरीर से निकली जा रही हैं जान 
सूख गये सब खेत खलियान ...
हे भगवान !
शायद इन्सान जल की महत्वता से था अंजान
सूख गये सब खेत खलियान ...
कुछ और कहने को नही हैं मेरे पास शब्द , क्योंकि मैं भी हूँ एक बेबश इन्सान
सूख गये सब खेत खलियान ....
                                           लेखक-अजय कुमार सांखला

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